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सचमुच वो ऐसी ही थी

 





मैं बेहद थका हुआ ,रात की सैर कर अपने रेजिडेंशियल ब्लॉक के गेट से अपने कमरे की ओर बढ़ रहा था , सामने से एक बेहद खूबसूरत युवती मेरी ओर बढ़ रही थी , जैसे जाने कब से मुझे जानती हो , उस कैंपस में रात 10 बजे ये एस्पेक्टेड नहीं था , मैं हैरान था , कौन हो सकता है , तब तक गुलाबी साड़ी में सौंदर्य की अप्रतिम छवि मेरे सामने खिलखिला रही थी ।

ओह .......... तो ये तुम हो , इस समय कँहा घूम रही हो ।
मैं जा रही हूँ आज ।
अभी इस समय ?
हाँ । मैं फिर हैरान था । वो मेरा हाथ पकड़ के अपने कमरे की ओर चल पड़ी ।
हम गैलरी में वँहा थे जँहा से दोनों दिशाओं में कमरे थे । वंही खड़े होकर हम बात करने लगे, जीवन के सत्यों की खोज पर।
जब कि सच ये था कि एक ही ब्लॉक में करीब एक महीने से मात्र 20 कमरों की दूरी पर हम थे और आज वो मिली वो भी घर लौटने की भागम भाग में । मैंने पूछ ही लिया ऐसा क्यों ? मैं ऐसी ही हूँ। और हम दोनों उसकी इस बात पे खिलखिला रहे थे । सचमुच वो ऐसी ही थी , बेबूझ ।
मेरी इंगेजमेंट हो गयी है ।वाउ । मैं बेहद खुश हुआ , कौन है , वो भाग्यवान ?
मिलवा दूंगी जल्दी ही, चलें मैं अपना सामान ले लूँ ,उसके 2-3 बैग ले कर हम कैंपस के गेट पर थे , तुम सामान देखो मैं अभी आई यह कहकर उसने पार्किंग से स्कूटी उठाई और 10 मिनट बाद जब वो लौटी तो उसके साथ एक हैंडसम युवक था ,इनसे मिलो ये मिस्टर हैंडसम । ओह तो ये थे जनाब भाग्यवान । बन्दा सचमुच खुशमिजाज और मिलनसार था । इस बीच टैक्सी आ गयी और उस युवक के साथ वो एअरपोर्ट के लिए चल दी ।
मैं वापस अपने कमरे की ओर चल पड़ा उन यादों के साथ जो बेबूझ थीं।

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