शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

लोकतंत्र क़ी सफलता लोगों की भागीदारी से तय होती है --


२६ जनवरी १९५० को भारत में हमारे पूर्वजों ने संवैधानिक घोषणा की कि भारत एक लोकतान्त्रिक गणतंत्र होगा १९५० से २०१० इन साठ सालों के गुजर जाने के बाद -वर्ष २०११ -१५ अगस्त आजादी की ६४ वी सालगिरह के ठीकएक दिन बाद १६ अगस्त २०११ ------------------------यकायक ----६४ साल से इस देश कि व्यवस्था में नासूर बन चुके भ्रष्टाचार के फोड़े में किसी ने एक नश्तर लगा दिया और जब वह नश्तर चला -देश के प्रधानमंत्री सेलेकर विपक्ष में बैठे बड़े बड़े ललुओं ने उसकी धार को अपने सीने पर चलता महसूस किया और इस नश्तर के चलने के बाद इस देश में - रक्त की धार मवाद की जगह फूट निकली एक -अग्निवर्षा ,जिसमेइस देश के बच्चे से लेकर बूढ़े तक को उस आग से नहला दिया -जिस आग में नहाने के बाद सिर्फ ये सुर हीनिकलते हैं ---वन्दे मातरम् -------इन्कलाब जिंदाबाद ---भारत माता की जय हो --------------------- ---------------------------------आखिर हुआ क्या -------------------------------------------- सत्ता से विपक्ष --संसद से सड़क -------मीडिया से न्यायव्यवस्था ------------सब हैरान हैं ---------- ये अचानक इतनी आग ---कैसे फूट निकली ?????

शनिवार, 13 अगस्त 2011

कौन ये जा रहा मौन ------


कौन ये जा रहा मौन --------------
हो बेटा - बैरी - हा जीजी
इन तमाम करुण क्रन्दनो के बीच
असम्प्रकत- वीतराग सा शुभ्र वसन मीत ---
कौन ये जा रहा मौन ,
मृत्यु के महानुष्ठान में दे रहा हवि--अचेत ,
हर पल हर घड़ी मानवता कि सेवा में संलग्न ,
या माया मोह में निमग्न ,
पा रहा स्वयं को निर्लिप्त योगी सा -या कर्मनिष्ठ ---
कौन ये जा रहा मौन -----------------------
ताकता हिकारत से -- चहुँ और ,
निपट गंवार - दरिद्र -मूर्ख-जाहिल -पापी - रुग्ण -
इन नरक के हरकारों के बीच ,
नीम की जीर्ण पीत झरी चटकती पत्तियों पर
अभिशप्त रुग्णालय के खंडहरनुमा देवालय की निस्तब्ध प्रस्तर प्रतिमा सा ---
कौन ये जा रहा मौन ------------------------------------
कल तक थी जिसमें आग भस्म कर देने को -
समस्त धरा की ज़रा-----
अतीत के किसी ज्वालामुखी की राख के ढेर सा शांत --
सम्प्रति धीर प्रशान्त ----स्थितिप्रज्ञा सा --------
कौन ये जा रहा मौन