गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

बुरा आदमी

मैं अक्सर जब लोगों से मिलता हूँ , जंहा कंही जाता हूँ
मुझे बड़े अच्छे लोग मिलते हैं ,
बड़े प्यारे लोग - देश की दशा से परेशान -
हैरान , मेरी तरह
मेरे देश का आम आदमी कितना सीधा - भोला -
शरीफ इंसान है - ठीक मेरी तरह .
कभी सफ़र करो , बस या ट्रेन में ,
कितना डिस्कशन देश की दशा - भ्रष्टाचार -
राजनीति - आम आदमी के कष्ट पर
कितना डिस्कशन - मेरी तरह
और फिर हर तरफ देश की गली
गली में मौजूद मेरी प्यारी भारतीय नारी
सौन्दर्य - सदगुणों से भरपूर -
मेरे प्यारे भारत के सदियों से
चले आ रहे चरित्र के महान गुणों से परिपूर्ण
पर ये मेरे देश का आम आदमी
इस प्यारी भारतीय नारी को -
सड़क पर ‘आतियों-जातियों’ को
बानर की तरह घूरता क्यों है -
मेरी तरह
और अक्सर तब इस महान भारत राष्ट्र में
कोई हादसा रोज होता है इस देश की आधी
आबादी के साथ --- बस सिर्फ संज्ञा बदल जाती है
कभी वो दहेज़ की- कभी बलात्कार की
कभी उसके भूर्ण की बलि चढ़ जाती है ,
फिर कभी त्राहि त्राहि मच जाती है ,
दिल दहल जाते हैं -- दिल्ली भी दहल जाती है ,

पर फिर मैं इतना हैरान क्यों हूँ ,
परेशान क्यों हूँ -- आश्चर्य चकित
कि मैं इतना भला इंसान -
मेरे देश वासी कितने प्यारे -
पर ये मेरा देश ऎसा कैसे ?
फिर वो बुरा आदमी कंहा है
किधर है वो बुरा आदमी - जिसकी करतूतों
से डरकर मुझे हर सुबह अखबार पड़ने से डर
लगता है और शाम को टी . वी . देखने से
वो कंहा छिप के बैठ गया है - बुरा आदमी
थक के जब मैंने गर्दन घुमाई ,
अरे ये तो यंहा छिपा बैठा है - बुरा आदमी
कब से ढूंड रहा था इसको - साला आज मिल
ही गया - यंहा मेरे ही घर में - तभी दोस्तों
मेरी बीबी की आवाज से तन्द्रा भंग हो गयी
क्यों जी -- कब तक आईने के सामने बैठे रहोगे
सब्जी मंडी नहीं चलना क्या -
आजकल सब्जियां कितनी महंगी हो गयी हैं .

सोमवार, 17 दिसंबर 2012

अनन्य -
सब सहज सा हो गया है --------
क्या फर्क पड़ता है कोई बस खो गया है --------
लोग त्रस्त हैं , पर फिर भी व्यस्त हैं ,
यंहा जब कि शमशान में ---- जंहा सब निरस्त है ,
वंहा भी सब अपने ----- मोबाइल पर व्यस्त हैं
कितना कुछ,जीवन में ---सब अस्त -व्यस्त है .
इतना बिखर गया है जीवन-- फिर भी कितने मस्त हैं
सब सहज सा हो गया है --------

क्या फर्क पड़ता है कोई बस खो गया है --------

मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

                              मैं मलय हूँ ,
                               दिग - देगांतर  में फैलता ही
                               जाये जो वो वलय हूँ ,
                                मैं मलय हूँ ,
                                 क्या पता था - मनुज की आहटों में जिन्दगी है
                                         क्या पता - आलिंगनो की ऊष्मा में बंदगी है ,
                                             मैं मलय हूँ---
                                          क्या पता था - मनुज भी हैं -सुग्न्धिवार्धित
                                          अब तलक तो पुष्प ही देखे थे - सुगन्धित ,
                                             वेदना हर ले जो , एक नजर भी भर ले जो ,
                                             संवेदनाओ को करे जीवंत , बिना छुए ,
                                             अनछुए पहलू , जगा दे ,---
                                              मैं मलय हूँ ,

शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

वो हवाओं में गुनगुनाएगा

वो हवाओं में गुनगुनाएगा - तुम सुन भी सकते हो
वो फिजाओं में----महक जायेगा ,
फिर उस महक को तुम भर लेना अपनी बांहों में
वो यूँ भी मिल जायेगा
आये न आये तुम्हारे पास - ऐ जिन्दगी

वो हवाओं में गुनगुनाएगा---

रविवार, 4 नवंबर 2012

अनन्या 

तुम्हारी तमाम बदमाशियों के बावजूद -
मैं लगा लेना चाहता हूँ तुम्हे अपने सीने से -
चूम लेना चाहता हूँ तुम्हारा माथा और
तुम्हे अपने आगोश में लेकर डूब
जाना चाहता हूँ तुम्हारी निगाहों में -
गहरे और गहरे और गहरे ताकि -
उनकी गहराइयों से ढूंढ़ कर ला सकूँ
वो राज - जहाँ से जन्म होता है
इन बदमाशियों का - जिनसे तुम
सताती हो तमाम ज़माने को
और मुझे भी

अनन्या 
नहीं कोई इश्क नहीं -
मोहब्बत नहीं - जूनून नहीं -
सिर्फ यहाँ एक अनुपस्थिति है- फिर भी ,
ये क्यों लगता है कि -- तुम हो -
नहीं इस ख़ामोशी में ,
कोई दर्द नहीं - कोई तन्हा नहीं ,
कोई वजूद नहीं , फिर भी ,
क्यों लगता है कि-- तुम हो,
यूँ भी नहीं कि इस फेसबुक पर ,
कोई दोस्त नहीं , कोई अपडेट नहीं ,
इन दिनों बस तुम्हारा फैलाया हुआ सन्नाटा है ,
फिर भी , क्यों लगता है कि -- तुम हो