शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

वो हवाओं में गुनगुनाएगा

वो हवाओं में गुनगुनाएगा - तुम सुन भी सकते हो
वो फिजाओं में----महक जायेगा ,
फिर उस महक को तुम भर लेना अपनी बांहों में
वो यूँ भी मिल जायेगा
आये न आये तुम्हारे पास - ऐ जिन्दगी

वो हवाओं में गुनगुनाएगा---

रविवार, 4 नवंबर 2012

अनन्या 

तुम्हारी तमाम बदमाशियों के बावजूद -
मैं लगा लेना चाहता हूँ तुम्हे अपने सीने से -
चूम लेना चाहता हूँ तुम्हारा माथा और
तुम्हे अपने आगोश में लेकर डूब
जाना चाहता हूँ तुम्हारी निगाहों में -
गहरे और गहरे और गहरे ताकि -
उनकी गहराइयों से ढूंढ़ कर ला सकूँ
वो राज - जहाँ से जन्म होता है
इन बदमाशियों का - जिनसे तुम
सताती हो तमाम ज़माने को
और मुझे भी

अनन्या 
नहीं कोई इश्क नहीं -
मोहब्बत नहीं - जूनून नहीं -
सिर्फ यहाँ एक अनुपस्थिति है- फिर भी ,
ये क्यों लगता है कि -- तुम हो -
नहीं इस ख़ामोशी में ,
कोई दर्द नहीं - कोई तन्हा नहीं ,
कोई वजूद नहीं , फिर भी ,
क्यों लगता है कि-- तुम हो,
यूँ भी नहीं कि इस फेसबुक पर ,
कोई दोस्त नहीं , कोई अपडेट नहीं ,
इन दिनों बस तुम्हारा फैलाया हुआ सन्नाटा है ,
फिर भी , क्यों लगता है कि -- तुम हो