कौन  ये  जा  रहा  मौन  --------------
 हो  बेटा  - ओ  बैरी  - हा  जीजी 
 इन  तमाम  करुण  क्रन्दनो  के  बीच 
 असम्प्रकत - वीतराग   सा   शुभ्र  वसन  मीत  ---
 कौन  ये  जा  रहा  मौन  ,
 मृत्यु  के  महानुष्ठान  में  दे  रहा  हवि -- अचेत  ,
 हर  पल  हर  घड़ी  मानवता  कि  सेवा  में  संलग्न  ,
 या  माया  मोह  में  निमग्न  ,
 पा  रहा  स्वयं  को  निर्लिप्त  योगी  सा  - या  कर्मनिष्ठ  ---
 कौन  ये  जा  रहा  मौन  -----------------------
 ताकता  हिकारत  से  -- चहुँ  और  ,
 निपट  गंवार  - दरिद्र  - मूर्ख - जाहिल  - पापी  - रुग्ण  -
 इन  नरक  के  हरकारों  के  बीच  ,
 नीम  की  जीर्ण  पीत  झरी  चटकती  पत्तियों  पर  । 
 अभिशप्त   रुग्णालय  के  खंडहरनुमा  देवालय  की  निस्तब्ध  प्रस्तर  प्रतिमा  सा  ---
 कौन  ये  जा  रहा  मौन  ------------------------------------
 कल  तक  थी  जिसमें  आग  भस्म  कर  देने  को  -
 समस्त  धरा  की  ज़रा -----
 अतीत  के  किसी  ज्वालामुखी  की  राख  के  ढेर  सा  शांत  --
 सम्प्रति  धीर  प्रशान्त  ---- स्थितिप्रज्ञा  सा  --------
 कौन  ये  जा  रहा  मौन 
 
 
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