शनिवार, 13 अगस्त 2011

कौन ये जा रहा मौन ------


कौन ये जा रहा मौन --------------
हो बेटा - बैरी - हा जीजी
इन तमाम करुण क्रन्दनो के बीच
असम्प्रकत- वीतराग सा शुभ्र वसन मीत ---
कौन ये जा रहा मौन ,
मृत्यु के महानुष्ठान में दे रहा हवि--अचेत ,
हर पल हर घड़ी मानवता कि सेवा में संलग्न ,
या माया मोह में निमग्न ,
पा रहा स्वयं को निर्लिप्त योगी सा -या कर्मनिष्ठ ---
कौन ये जा रहा मौन -----------------------
ताकता हिकारत से -- चहुँ और ,
निपट गंवार - दरिद्र -मूर्ख-जाहिल -पापी - रुग्ण -
इन नरक के हरकारों के बीच ,
नीम की जीर्ण पीत झरी चटकती पत्तियों पर
अभिशप्त रुग्णालय के खंडहरनुमा देवालय की निस्तब्ध प्रस्तर प्रतिमा सा ---
कौन ये जा रहा मौन ------------------------------------
कल तक थी जिसमें आग भस्म कर देने को -
समस्त धरा की ज़रा-----
अतीत के किसी ज्वालामुखी की राख के ढेर सा शांत --
सम्प्रति धीर प्रशान्त ----स्थितिप्रज्ञा सा --------
कौन ये जा रहा मौन


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