गुरुवार, 20 दिसंबर 2012
सोमवार, 17 दिसंबर 2012
अनन्य -
सब सहज सा हो गया है --------
क्या फर्क पड़ता है कोई बस खो गया है --------
लोग त्रस्त हैं , पर फिर भी व्यस्त हैं ,
यंहा जब कि शमशान में ---- जंहा सब निरस्त है ,
वंहा भी सब अपने ----- मोबाइल पर व्यस्त हैं
कितना कुछ,जीवन में ---सब अस्त -व्यस्त है .
इतना बिखर गया है जीवन-- फिर भी कितने मस्त हैं
सब सहज सा हो गया है --------
सब सहज सा हो गया है --------
क्या फर्क पड़ता है कोई बस खो गया है --------
लोग त्रस्त हैं , पर फिर भी व्यस्त हैं ,
यंहा जब कि शमशान में ---- जंहा सब निरस्त है ,
वंहा भी सब अपने ----- मोबाइल पर व्यस्त हैं
कितना कुछ,जीवन में ---सब अस्त -व्यस्त है .
इतना बिखर गया है जीवन-- फिर भी कितने मस्त हैं
सब सहज सा हो गया है --------
क्या फर्क पड़ता है कोई बस खो गया है --------
मंगलवार, 4 दिसंबर 2012
मैं मलय हूँ ,
दिग - देगांतर में फैलता ही
जाये जो वो वलय हूँ ,
मैं मलय हूँ ,
क्या पता था - मनुज की आहटों में जिन्दगी है
क्या पता - आलिंगनो की ऊष्मा में बंदगी है ,
मैं मलय हूँ---
क्या पता था - मनुज भी हैं -सुग्न्धिवार्धित
अब तलक तो पुष्प ही देखे थे - सुगन्धित ,
वेदना हर ले जो , एक नजर भी भर ले जो ,
संवेदनाओ को करे जीवंत , बिना छुए ,
अनछुए पहलू , जगा दे ,---
मैं मलय हूँ ,
दिग - देगांतर में फैलता ही
जाये जो वो वलय हूँ ,
मैं मलय हूँ ,
क्या पता था - मनुज की आहटों में जिन्दगी है
क्या पता - आलिंगनो की ऊष्मा में बंदगी है ,
मैं मलय हूँ---
क्या पता था - मनुज भी हैं -सुग्न्धिवार्धित
अब तलक तो पुष्प ही देखे थे - सुगन्धित ,
वेदना हर ले जो , एक नजर भी भर ले जो ,
संवेदनाओ को करे जीवंत , बिना छुए ,
अनछुए पहलू , जगा दे ,---
मैं मलय हूँ ,
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