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संदेश

बहुत खूबसूरत हो तुम !

बहूत खूबसूरत हो तुम, बहुत खूबसूरत हो तुम ! कभी मैं जो कह दूं मोहब्बत है तुम से ! तो मुझको खुदारा गलत मत समझना ! के मेरी जरुरत हो तुम, बहुत खूबसूरत हो तुम ! है फ़ुलों की डाली, ये बाहें तुम्हारी ! है खामोश जादू निगाहें तुम्हारी ! है खामोश जादू निगाहें तुम्हारी ! नज़र से जमाने की खुद को बचाना ! किसी और से देखो दिल न लगाना ! के मेरी अमानत हो तुम ! बहुत खूबसूरत हो तुम ! है चेहरा तुम्हारा के दिन है सुनेहरा ! और उस पर ये काली घटाओं का पेहरा ! गुलाबों से नाजु़क मेहकता बदन है ! ये लब है तुम्हारा के खिलता चमन है ! बिखेरो जो जु़ल्फ़ें तो शरमाये बादल ! ये ताहिर भी देखे तो हो जाये पागल ! वो पाकीजा़ मुरत हो तुम ! बहुत खूबसूरत हो तुम ! मोहब्बत हो तुम, बहुत खूबसूरत हो तुम ! जो बन के कली मुस्कूराती है अक्सर ! शबे हिज्र मैं जो रुलाती है अक्सर ! जो लम्हों ही लम्हों मे दुनिया बदल दे ! जो शायर को दे जाये पेहलु ग़ज़ल की ! छुपाना जो चाहे छुपाई न जाये ! भुलाना जो चाहे भुलाई न जाये ! वो पेहली मोहब्बत हो तुम ! बहुत खूबसूरत हो तुम !!

नहीं मैं तन्हा तो नहीं ,

नहीं मैं तन्हा तो नहीं ,        मेरे साथ हैं इस -फेस बुक पे निरंतर होते -स्टेटस अपडेट-        मेरी सबसे अजीज़ गर्ल फ्रेंड ---" जागो - यही एकमात्र कार्य है ,        मित्र 1 - फिल्म पहचानो प्रतियोगिता        मित्र 2 - चलाओ न नैनो के बाण रे        मित्र 3 - संता बंता के लेटेस्ट        मित्र 4 - चले जाने दो उस बेवफा को किसी और की बांहों में        मित्र 5 -  लव इस द ओनली मिरेकल        मित्र 6 - फोटो - स्विट्ज़रलैंड        मित्र 7 - जोया मेरा नया जूनून        मित्र 8 - रियली वंडरफुल टिप        मित्र 9 - जिन्दगी भी साली ग्रामर जैसी है                    और कुछ सिरफिरे जिन्दगी जिनको ग्रामर जैसी नहीं लगती -         जो सिर्फ ठीक से सो नहीं पाने की वजह से फेस बुक पर नहीं आते --- ...

इक ग़ज़ल

इक ग़ज़ल उस पे लिखूँ दिल का तकाज़ा है बहुत इन दिनों ख़ुद से बिछड़ जाने का धड़का है बहुत रात हो दिन हो ग़फ़लत हो कि बेदारी हो उसको देखा तो नहीं है उसे सोचा है बहुत तश्नगी के भी मुक़ामात हैं क्या क्या यानी कभी दरिया नहीं काफ़ी, कभी क़तरा है बहुत मेरे हाथों की लकीरों के इज़ाफ़े हैं गवाह मैं ने पत्थर की तरह ख़ुद को तराशा है बहुत कोई आया है ज़रूर और यहाँ ठहरा भी है घर की दहलीज़ पे ऐ यारों उजाला है बहुत

हृदय में समा जाओ

आओ - तुम मेरे हृदय में समा जाओ तुम खोज रहे हो सत्य को - जो पोशीदा है मेरे सीने में , और वे तमाम असत्य भी , जिनको नकार कर , तुमने बेदखल कर दिया है , अपनी अक्ल से , आओ और जान लो ये भी - कि इस जगत में कुछ भी तो स्थिर नहीं , तुम्हारे या मेरे - उसके या इसके -, या किसी के भी सत्य - असत्य , कब मौका देखकर अपना रूप बदल लेते हैं, यही तो बस जान लेना है , पर मैं भी समझ पता हूँ - तुम्हारे भय-मोह को , जिस सत्य को तुम न जाने कब से ढोते ढोते ,थक चुकी हो , हालाँकि बखूबी तुम भी जानती हो , उस सत्य का राम नाम सत्य , कभी का हो चुका है , मगर तुम उसे ढो रही हो ,अपने सत्य के नाम पर , और खो रही हो - निरन्तर , प्रति पल उपलब्ध , इस जीवन्त छण को , जो तुम्हे दे सकता है - हर पल एक नया सत्य - चिर नूतन , यदि तुम आओ और समा जाओ मेरे हृदय में।
                    वेलेंटाइन डे की इस पावन वेला में ,                  कल्पना में ही सही,                                                 मुझे अपने आगोश में लेकर सो जाना               और कोई चाहत नहीं इस जगत में अब मुझको               मैं चाहता हूँ --शून्य में खो जाना ,               या सच कहूँ तो मात्र विसर्जित हो जाना --               सब तो करके देख लिया मैंने --               कर्म -- भक्ति ---ज्ञान साधना              कंही कोई सार नहीं --- सब है असार --...
बेताब हूँ मैं उसके लिये , मालूम है बखूबी उसको , फिर भी वो मुझको इतना सताती क्यों है ? दुनिया भर को बताती है , वो हाले दिल अपना , सिर्फ मुझसे ही इस बात को छुपाती क्यों है ? खुदबखुद झगडती है , मुझसे वो झगड़ालू झाड , पर मुझ ही पे ये इलज़ाम वो लगाती क्यों है ? चलो गर इलज़ाम लगाया मुझ पर वो भी ठीक, मगर फिर खुद को वो इतना रुलाती क्यों है ? माना कि नींद नहीं आती है रात भर उसको , पर मुझको फिर वो रात भर जगाती क्यों है ? तेवर उसके देखो यूँ कि जीतेगी ज़माने को , फिर किसी के आगे यूँ वो हार जाती क्यों है ?

बुरा आदमी

मैं अक्सर जब लोगों से मिलता हूँ , जंहा कंही जाता हूँ मुझे बड़े अच्छे लोग मिलते हैं , बड़े प्यारे लोग - देश की दशा से परेशान - हैरान , मेरी तरह मेरे देश का आम आदमी कितना सीधा - भोला - शरीफ इंसान है - ठीक मेरी तरह . कभी सफ़र करो , बस या ट्रेन में , कितना डिस्कशन देश की दशा - भ्रष्टाचार - राजनीति - आम आदमी के कष्ट पर कितना डिस्कशन - मेरी तरह और फिर हर तरफ देश की गली गली में मौजूद मेरी प्यारी भारतीय नारी सौन्दर्य - सदगुणों से भरपूर - मेरे प्यारे भारत के सदियों से चले आ रहे चरित्र के महान गुणों से परिपूर्ण पर ये मेरे देश का आम आदमी इस प्यारी भारतीय नारी को - सड़क पर ‘आतियों-जातियों’ को बानर की तरह घूरता क्यों है - मेरी तरह और अक्सर तब इस महान भारत राष्ट्र में कोई हादसा रोज होता है इस देश की आधी आबादी के साथ --- बस सिर्फ संज्ञा बदल जाती है कभी वो दहेज़ की- कभी बलात्कार की कभी उसके भूर्ण की बलि चढ़ जाती है , फिर कभी त्राहि त्राहि मच जाती है , दिल दहल जाते हैं -- दिल्ली भी दहल जाती है , पर फिर मैं इतना हैरान क्यों हूँ , परेशान क्यों ...