गुरुवार, 16 मई 2013

हृदय में समा जाओ

आओ - तुम मेरे हृदय में समा जाओ
तुम खोज रहे हो सत्य को - जो पोशीदा है मेरे सीने में ,
और वे तमाम असत्य भी , जिनको नकार कर ,
तुमने बेदखल कर दिया है , अपनी अक्ल से ,
आओ और जान लो ये भी -
कि इस जगत में कुछ भी तो स्थिर नहीं ,
तुम्हारे या मेरे - उसके या इसके -,
या किसी के भी सत्य - असत्य ,
कब मौका देखकर अपना रूप बदल लेते हैं,
यही तो बस जान लेना है ,
पर मैं भी समझ पता हूँ - तुम्हारे भय-मोह को ,
जिस सत्य को तुम न जाने कब से ढोते ढोते ,थक चुकी हो ,
हालाँकि बखूबी तुम भी जानती हो ,
उस सत्य का राम नाम सत्य , कभी का हो चुका है ,
मगर तुम उसे ढो रही हो ,अपने सत्य के नाम पर ,
और खो रही हो - निरन्तर , प्रति पल उपलब्ध ,
इस जीवन्त छण को ,
जो तुम्हे दे सकता है - हर पल एक नया सत्य - चिर नूतन ,
यदि तुम आओ और समा जाओ मेरे हृदय में।

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