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5 मिनट में अपने मन को शांत करें - अनोखी विधि - Make your Mind Peaceful in 5 mins - Unique method

5 मिनट का  यह ध्यान आपके मन को स्वस्थ, शांत और प्रसन्न बना सकता है।




डॉ. पीयूष एक हड्डी रोग विशेषज्ञ, मुख्य वक्ता और प्रशिक्षक हैं, जिन्होंने मन पर वैज्ञानिक शोध को आध्यात्मिक ज्ञान के साथ जोड़कर मन की अनंत शक्तियों को उजागर किया है। उनका दृष्टिकोण हृदय को अपने जुनून की खोज करने और अजेय बनने के लिए सशक्त बनाना है। वे पश्चिम के उन्नत चिकित्सा विज्ञान और पूर्व के पवित्र आध्यात्मिकता के बीच मेल का एक आदर्श उदाहरण हैं।

उनके द्वारा प्रस्तुत है   इस वीडियो में एक अनोखी ध्यान तकनीक -

हम जानते हैं कि मन ही एकमात्र ऐसा यंत्र है जो मौन रहने पर सबसे शक्तिशाली होता है... तो आइए एक विचारहीन और शांत मन बनाएँ।

ध्यान मन और शरीर को शांत करने की एक प्राचीन साधना है। नियमित ध्यान से मानसिक तनाव कम होता है, मन एकाग्र होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह न केवल मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य पर भी अच्छा प्रभाव डालता है।

ध्यान करने से रक्तचाप संतुलित रहता है, नींद की गुणवत्ता सुधरती है और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। यह चिंता, अवसाद और क्रोध जैसी नकारात्मक भावनाओं को नियंत्रित करने में सहायक होता है।

स्वस्थ जीवन के लिए ध्यान को दैनिक जीवन का हिस्सा बनाना अत्यंत आवश्यक है। थोड़े समय का नियमित ध्यान भी शरीर और मन को स्वस्थ, शांत और प्रसन्न बना सकता है।

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रिश्ता ?

तुमसे ये रिश्ता क्या है      यूँ तो बस कभी यूँ ही मिले थे हम  फिर भी ये रिश्ता क्या है ,  मैंने कहा , चलोगे मेरे साथ    तुम चल ही तो पड़े थे और फिर जब कभी हम बात करते थे दूरभाष पर ही  तो यकायक फूल से खिल उठते थे ,     तो ये रिश्ता क्या है और तुम्हारे बेबूझ नाराजी के बावजूद    अरसे बाद जब मिले तो क्या खूब मिले तो फिर ये रिश्ता क्या है । कितना तो पूछा हर बार तुम हँस के यही बोले  मैं ऐसी ही हूँ बेबूझ ।  और अब जब तुम अपनी दुनिया में खो गयीहो      तो  मेरे अंतरतम से अचानक ये रिसता कया है

कौन ये जा रहा मौन ------

कौन ये जा रहा मौन -------------- हो बेटा - ओ बैरी - हा जीजी इन तमाम करुण क्रन्दनो के बीच असम्प्रकत - वीतराग सा शुभ्र वसन मीत --- कौन ये जा रहा मौन , मृत्यु के महानुष्ठान में दे रहा हवि -- अचेत , हर पल हर घड़ी मानवता कि सेवा में संलग्न , या माया मोह में निमग्न , पा रहा स्वयं को निर्लिप्त योगी सा - या कर्मनिष्ठ --- कौन ये जा रहा मौन ----------------------- ताकता हिकारत से -- चहुँ और , निपट गंवार - दरिद्र - मूर्ख - जाहिल - पापी - रुग्ण - इन नरक के हरकारों के बीच , नीम की जीर्ण पीत झरी चटकती पत्तियों पर । अभिशप्त रुग्णालय के खंडहरनुमा देवालय की निस्तब्ध प्रस्तर प्रतिमा सा --- कौन ये जा रहा मौन ------------------------------------ कल तक थी जिसमें आग भस्म कर देने को - समस्त धरा की ज़रा ----- अतीत के किसी ज्वालामुखी की राख के ढेर सा शांत -- सम्प्रति धीर प्रशान्त ---- स्थितिप्रज्ञा सा -------- कौन ये जा रहा मौन