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संदेश

हृदय में समा जाओ

आओ - तुम मेरे हृदय में समा जाओ तुम खोज रहे हो सत्य को - जो पोशीदा है मेरे सीने में , और वे तमाम असत्य भी , जिनको नकार कर , तुमने बेदखल कर दिया है , अपनी अक्ल से , आओ और जान लो ये भी - कि इस जगत में कुछ भी तो स्थिर नहीं , तुम्हारे या मेरे - उसके या इसके -, या किसी के भी सत्य - असत्य , कब मौका देखकर अपना रूप बदल लेते हैं, यही तो बस जान लेना है , पर मैं भी समझ पता हूँ - तुम्हारे भय-मोह को , जिस सत्य को तुम न जाने कब से ढोते ढोते ,थक चुकी हो , हालाँकि बखूबी तुम भी जानती हो , उस सत्य का राम नाम सत्य , कभी का हो चुका है , मगर तुम उसे ढो रही हो ,अपने सत्य के नाम पर , और खो रही हो - निरन्तर , प्रति पल उपलब्ध , इस जीवन्त छण को , जो तुम्हे दे सकता है - हर पल एक नया सत्य - चिर नूतन , यदि तुम आओ और समा जाओ मेरे हृदय में।
                    वेलेंटाइन डे की इस पावन वेला में ,                  कल्पना में ही सही,                                                 मुझे अपने आगोश में लेकर सो जाना               और कोई चाहत नहीं इस जगत में अब मुझको               मैं चाहता हूँ --शून्य में खो जाना ,               या सच कहूँ तो मात्र विसर्जित हो जाना --               सब तो करके देख लिया मैंने --               कर्म -- भक्ति ---ज्ञान साधना              कंही कोई सार नहीं --- सब है असार --...
बेताब हूँ मैं उसके लिये , मालूम है बखूबी उसको , फिर भी वो मुझको इतना सताती क्यों है ? दुनिया भर को बताती है , वो हाले दिल अपना , सिर्फ मुझसे ही इस बात को छुपाती क्यों है ? खुदबखुद झगडती है , मुझसे वो झगड़ालू झाड , पर मुझ ही पे ये इलज़ाम वो लगाती क्यों है ? चलो गर इलज़ाम लगाया मुझ पर वो भी ठीक, मगर फिर खुद को वो इतना रुलाती क्यों है ? माना कि नींद नहीं आती है रात भर उसको , पर मुझको फिर वो रात भर जगाती क्यों है ? तेवर उसके देखो यूँ कि जीतेगी ज़माने को , फिर किसी के आगे यूँ वो हार जाती क्यों है ?

बुरा आदमी

मैं अक्सर जब लोगों से मिलता हूँ , जंहा कंही जाता हूँ मुझे बड़े अच्छे लोग मिलते हैं , बड़े प्यारे लोग - देश की दशा से परेशान - हैरान , मेरी तरह मेरे देश का आम आदमी कितना सीधा - भोला - शरीफ इंसान है - ठीक मेरी तरह . कभी सफ़र करो , बस या ट्रेन में , कितना डिस्कशन देश की दशा - भ्रष्टाचार - राजनीति - आम आदमी के कष्ट पर कितना डिस्कशन - मेरी तरह और फिर हर तरफ देश की गली गली में मौजूद मेरी प्यारी भारतीय नारी सौन्दर्य - सदगुणों से भरपूर - मेरे प्यारे भारत के सदियों से चले आ रहे चरित्र के महान गुणों से परिपूर्ण पर ये मेरे देश का आम आदमी इस प्यारी भारतीय नारी को - सड़क पर ‘आतियों-जातियों’ को बानर की तरह घूरता क्यों है - मेरी तरह और अक्सर तब इस महान भारत राष्ट्र में कोई हादसा रोज होता है इस देश की आधी आबादी के साथ --- बस सिर्फ संज्ञा बदल जाती है कभी वो दहेज़ की- कभी बलात्कार की कभी उसके भूर्ण की बलि चढ़ जाती है , फिर कभी त्राहि त्राहि मच जाती है , दिल दहल जाते हैं -- दिल्ली भी दहल जाती है , पर फिर मैं इतना हैरान क्यों हूँ , परेशान क्यों ...
अनन्य - सब सहज सा हो गया है -------- क्या फर्क पड़ता है कोई बस खो गया है -------- लोग त्रस्त हैं , पर फिर भी व्यस्त हैं , यंहा जब कि शमशान में ---- जंहा सब निरस्त है , वंहा भी सब अपने ----- मोबाइल पर व्यस्त हैं कितना कुछ,जीवन में ---सब अस्त -व्यस्त है . इतना बिखर गया है जीवन-- फिर भी कितने मस्त हैं सब सहज सा हो गया है -------- क्या फर्क पड़ता है कोई बस खो गया है --------
                              मैं मलय हूँ ,                                दिग - देगांतर  में फैलता ही                                जाये जो वो वलय हूँ ,                                 मैं मलय हूँ ,                                  क्या पता था - मनुज की आहटों में जिन्दगी है                                          क्या पता - आलिंगनो की ऊष्म...

वो हवाओं में गुनगुनाएगा

वो हवाओं में गुनगुनाएगा - तुम सुन भी सकते हो वो फिजाओं में----महक जायेगा , फिर उस महक को तुम भर लेना अपनी बांहों में वो यूँ भी मिल जायेगा आये न आये तुम्हारे पास - ऐ जिन्दगी वो हवाओं में गुनगुनाएगा---