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संदेश

रिश्ता ?

तुमसे ये रिश्ता क्या है      यूँ तो बस कभी यूँ ही मिले थे हम  फिर भी ये रिश्ता क्या है ,  मैंने कहा , चलोगे मेरे साथ    तुम चल ही तो पड़े थे और फिर जब कभी हम बात करते थे दूरभाष पर ही  तो यकायक फूल से खिल उठते थे ,     तो ये रिश्ता क्या है और तुम्हारे बेबूझ नाराजी के बावजूद    अरसे बाद जब मिले तो क्या खूब मिले तो फिर ये रिश्ता क्या है । कितना तो पूछा हर बार तुम हँस के यही बोले  मैं ऐसी ही हूँ बेबूझ ।  और अब जब तुम अपनी दुनिया में खो गयीहो      तो  मेरे अंतरतम से अचानक ये रिसता कया है

जीवन

जीवन अज्ञात    भविष्य सम्भावना से पूर्ण  क्या है ज्ञात ? कब हो क्या घटित कौन जानता , किसके हिस्से में होगा प्रकाश कँहा , कब अंधकार कोई न जानता , ये रहस्य ? तब जीने की कला क्या है ? बेफिक्र होकर इस अज्ञात रहस्य से हमेशा जिओ आज में परिपूर्ण । कल के अज्ञात को रहने दो अज्ञात ।

तुम

उस दिन हम  जब अचानक आमने सामने थे , तुम्हारी खामोश निगाहों में एक खामोश शिकवा था न मेरे लिए ? कितनी खूबी से तुमने उसे छिपा लिया अपनी पलकों में । और यूँ मिली मुझसे जैसे कभी कोई शिकवा न था । शिकवा न था कोई तो फिर वो दूरियां क्यों थी ? मिलते हैं फिर कभी , ये कह के तुम चल तो दीं । मगर कब तक , और फिर एक दिन  जब सच में तुम को जाना था तब आयीं थी तुम फिर मेरे पास कुछ पलों के लिये । और मैं आज भी उन पलों के साथ जी रहा हूँ,  जैसे मुझे पूरी पृथ्वी का साम्राज्य मिल गया हो ।

तो आखिर - ये खुदा क्या है ?

जबकि तुझ बिन नही कोई मौंजू फिर ये हंगामा ए जुदा क्या है.... तू है फेसबुक पे और है भी नहीं तो फिर ये आखिर हुआ  क्या है ? माना तेरा जन्म दिन है कल पर आज ही मुझे ये हुआ क्या है ? पड़ा हूँ बिस्तर पे औ आ रहे हैं चक्कर या इलाही ये माजरा क्या है ? लोग जीते है जी जी के मरते है मैं मर मर के जी रहा हूँ माजरा क्या है ? मैं हूँ - मैं ही हूँ - मैं - मैं ही हूँ तो आखिर - ये खुदा क्या है ?
ओहो- तो ये तुम हो ?वाक़ई, हद है, मैं तो सच मुच तेरे को भूल गया ? सब बुरे मुझको याद रहे - अरे , जो भला था उसी को भूल गया ? कितना वक्त हमसफ़र रह कर, कमबख्त - हमनशीं को भूल गया? तेरी उस हँसी को तो भूल गया अपने उस ज़ख्म को भी भूल गया ? दोस्तों - अब तो रास्ता दे दो, अब तो मैं उस गली को भूल गया ? कितने प्यार से बोली थी वो , क्या हुआ ? महजबीं को भूल गया ?
उसके साए से सट के चलते हैं . हम भला , टालने से टलते हैं ? मैं कन्हा उस तरह से रंग बदलता हूँ -- जिस तरह से वो रंग बदलते हैं . तुम ही हो जान हर महफ़िल की हम कन्हा घर से अब निकलते हैं . तुम बनो रंग - तुम बनो सुगंध --- हम तो आंसुओ में ढलते हैं . है ये कितना दूर का सफ़र यारों लडखडाते पांव कंहा संभलते हैं . हो रहा हूँ जिस तरह मैं बर्बाद देखने वाले तो इससे भी जलते हैं
या रब मुझे चैन क्यों नहीं पड़ता एक ही शख्स था इस जहाँ में क्या ? ताकता रहता हूँ उस मकां की तरफ कोई नहीं रहता है उस मकाँ में क्या ? मेरी हर बात बेअसर ही रही कोई नुक्स है मेरे बयाँ में क्या ? बोलते नहीं क्यों तुम मुझसे जख्म ही दोगे उपहार में क्या ? क्या कहूँ - क्या लिखूँ - क्या करूँ कोई हरकत नहीं आती तेरी जुबाँ पे क्या?