तुमसे ये रिश्ता क्या है       यूँ तो बस कभी यूँ ही मिले थे हम   फिर भी ये रिश्ता क्या है ,   मैंने कहा , चलोगे मेरे साथ     तुम चल ही तो पड़े थे और  फिर जब कभी हम बात करते थे दूरभाष पर ही   तो यकायक फूल से खिल उठते थे ,      तो ये रिश्ता क्या है  और तुम्हारे बेबूझ नाराजी के बावजूद     अरसे बाद जब मिले तो क्या खूब मिले  तो फिर ये रिश्ता क्या है ।  कितना तो पूछा हर बार तुम हँस के यही बोले   मैं ऐसी ही हूँ बेबूझ ।   और अब जब तुम अपनी दुनिया में खो गयीहो       तो  मेरे अंतरतम से अचानक ये रिसता कया है  
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