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सर !

सर   ! सर   ! सर   ! मुझे लगता है डर , आपसे नही , अपने आप से,   लगता है डर , क्यूँ कि मैं खोज रही हूँ , जो  उत्तर , वो  छिपा है , कंही किसी कोने में , मेरे ह्रदय के --- पर , मैं ढूंढ़ रही हूँ उसे , और प्रयोग कर रही हूँ ,  अपना सर !

हेलो जिन्दगी

               तू मुझे कितना हैरां कर देती है -- अभी ही तो तू आई थी ,                    एक खुशनुमा हवा के झोंके की तरह - और भर दिया था तूने मुझे -                मेरी सांसो को कर दिया था ओतप्रोत - प्राणों से - बाहर से भीतर - भीतर से बाहर,                   ऊर्जावान  हो उठा था मै ---                फिर यकायक ये क्या हुआ -- रोज की तरह आज सुबह -                   जब मैंने तुझे कहा --  हेलो जिन्दगी --               तो मेरे शब्दों में प्राण ही नहीं थे , खुद को ही बुरा लगा था -               कि ऐसे निष्प्राण - निस्पंद शब्दों से कैसे जिन्दगी को हेलो कहा जा सकता है .          ...

प्रेम की झील या ज्ञान की ?

मैं तो ये सोचकर तेरे पास आया था ,             कि  तू एक प्रेम की झील है-- पर अभी एक कदम ही तो बढ़ा था तेरी तरफ ,            कि  चाँदनी अभी बिखरी ही थी - यकायक , मुझे खुद पे यकीन न रहा ,   इतना नूर था - तेरे आसपास -- तेरे करीब , जैसे कोहेनूर हो कोई ख़ास -- कि जैसे ताज - महल बदल रहा हो तेजो - महालय में , एक  मंदिर की तरह , और मैं हूँ यंहा खड़ा -- इस निस्तब्ध मंदिर में , एक ऐसे भक्त की तरह मौन , जिसे ज्ञान की देवी ने दर्शन देकर , कर दिया हो स्तब्ध ------------ तू तो कहती थी -- मैं प्रेम की एक झील हूँ , फिर ये ज्ञान ---? ओह ---आज समझ पाया -- क्यों कहते थे भगवान ( ओशो ) कि भीतर ज्ञान  का दिया जले , तो बाहर प्रकट होगा ही  प्रेम का नूर - तभी तो तुम हो न कोहेनूर , या  प्रेम की झील या ज्ञान की झील ?                                          17 अगस्त 13 श...

संस्कृत कविता

हे देवी ! सौन्दर्य अधिष्ठात्री ,    मम ह्रदयं त्वं , मम ह्रदयं त्वं, त्वं संग वार्तालाप करोमि ,   जीवन प्रफ्फुलित , जीवन प्रफ्फुलित, त्वं संग भ्रमणं गच्छामि ,     ह्रदयं उल्लसित, ह्रदयं उल्लसित  

तुम्हारे मेरे दरमियाँ,

नहीं , मुझे बर्दाश्त नही कोई भी - तुम्हारे मेरे दरमियाँ ,-- कोई भी ,     तभी तो भटकता फिर रहा हूँ मैं -- तुम्हारे  और मेरे दरमियाँ- कभी तुम तक - कभी  खुद तक ,      पर क्या करूं - क्या कहूँ तुमसे , तुम्ही तो ले आती हो इन सब को - तुम्हारे मेरे दरमियाँ, तुम्हारे साथ ये न जाने कौन कौन आ जाते हैं - तुम्हारे मेरे दरमियाँ,      पर तुम भी क्या करो ,तुम कहती तो हो खुद ब खुद ,  तुम प्रेम की एक झील हो या प्रेम का एक झरना ,          तो ये सब तो होता रहेगा ,   और और और भी आते रहेंगे,  न जाने कौन कौन - तुम्हारे मेरे दरमियाँ,  चलो फिर मैं भी एक प्रेम का सागर बन जाता हूँ , जंहा आकर सब समा जाएँ ,  खो दें अपना अस्तित्व -- तुम्हारे मेरे दरमियाँ,                                      ११  अगस्त २०१३

बहुत खूबसूरत हो तुम !

बहूत खूबसूरत हो तुम, बहुत खूबसूरत हो तुम ! कभी मैं जो कह दूं मोहब्बत है तुम से ! तो मुझको खुदारा गलत मत समझना ! के मेरी जरुरत हो तुम, बहुत खूबसूरत हो तुम ! है फ़ुलों की डाली, ये बाहें तुम्हारी ! है खामोश जादू निगाहें तुम्हारी ! है खामोश जादू निगाहें तुम्हारी ! नज़र से जमाने की खुद को बचाना ! किसी और से देखो दिल न लगाना ! के मेरी अमानत हो तुम ! बहुत खूबसूरत हो तुम ! है चेहरा तुम्हारा के दिन है सुनेहरा ! और उस पर ये काली घटाओं का पेहरा ! गुलाबों से नाजु़क मेहकता बदन है ! ये लब है तुम्हारा के खिलता चमन है ! बिखेरो जो जु़ल्फ़ें तो शरमाये बादल ! ये ताहिर भी देखे तो हो जाये पागल ! वो पाकीजा़ मुरत हो तुम ! बहुत खूबसूरत हो तुम ! मोहब्बत हो तुम, बहुत खूबसूरत हो तुम ! जो बन के कली मुस्कूराती है अक्सर ! शबे हिज्र मैं जो रुलाती है अक्सर ! जो लम्हों ही लम्हों मे दुनिया बदल दे ! जो शायर को दे जाये पेहलु ग़ज़ल की ! छुपाना जो चाहे छुपाई न जाये ! भुलाना जो चाहे भुलाई न जाये ! वो पेहली मोहब्बत हो तुम ! बहुत खूबसूरत हो तुम !!

नहीं मैं तन्हा तो नहीं ,

नहीं मैं तन्हा तो नहीं ,        मेरे साथ हैं इस -फेस बुक पे निरंतर होते -स्टेटस अपडेट-        मेरी सबसे अजीज़ गर्ल फ्रेंड ---" जागो - यही एकमात्र कार्य है ,        मित्र 1 - फिल्म पहचानो प्रतियोगिता        मित्र 2 - चलाओ न नैनो के बाण रे        मित्र 3 - संता बंता के लेटेस्ट        मित्र 4 - चले जाने दो उस बेवफा को किसी और की बांहों में        मित्र 5 -  लव इस द ओनली मिरेकल        मित्र 6 - फोटो - स्विट्ज़रलैंड        मित्र 7 - जोया मेरा नया जूनून        मित्र 8 - रियली वंडरफुल टिप        मित्र 9 - जिन्दगी भी साली ग्रामर जैसी है                    और कुछ सिरफिरे जिन्दगी जिनको ग्रामर जैसी नहीं लगती -         जो सिर्फ ठीक से सो नहीं पाने की वजह से फेस बुक पर नहीं आते --- ...

इक ग़ज़ल

इक ग़ज़ल उस पे लिखूँ दिल का तकाज़ा है बहुत इन दिनों ख़ुद से बिछड़ जाने का धड़का है बहुत रात हो दिन हो ग़फ़लत हो कि बेदारी हो उसको देखा तो नहीं है उसे सोचा है बहुत तश्नगी के भी मुक़ामात हैं क्या क्या यानी कभी दरिया नहीं काफ़ी, कभी क़तरा है बहुत मेरे हाथों की लकीरों के इज़ाफ़े हैं गवाह मैं ने पत्थर की तरह ख़ुद को तराशा है बहुत कोई आया है ज़रूर और यहाँ ठहरा भी है घर की दहलीज़ पे ऐ यारों उजाला है बहुत

हृदय में समा जाओ

आओ - तुम मेरे हृदय में समा जाओ तुम खोज रहे हो सत्य को - जो पोशीदा है मेरे सीने में , और वे तमाम असत्य भी , जिनको नकार कर , तुमने बेदखल कर दिया है , अपनी अक्ल से , आओ और जान लो ये भी - कि इस जगत में कुछ भी तो स्थिर नहीं , तुम्हारे या मेरे - उसके या इसके -, या किसी के भी सत्य - असत्य , कब मौका देखकर अपना रूप बदल लेते हैं, यही तो बस जान लेना है , पर मैं भी समझ पता हूँ - तुम्हारे भय-मोह को , जिस सत्य को तुम न जाने कब से ढोते ढोते ,थक चुकी हो , हालाँकि बखूबी तुम भी जानती हो , उस सत्य का राम नाम सत्य , कभी का हो चुका है , मगर तुम उसे ढो रही हो ,अपने सत्य के नाम पर , और खो रही हो - निरन्तर , प्रति पल उपलब्ध , इस जीवन्त छण को , जो तुम्हे दे सकता है - हर पल एक नया सत्य - चिर नूतन , यदि तुम आओ और समा जाओ मेरे हृदय में।
                    वेलेंटाइन डे की इस पावन वेला में ,                  कल्पना में ही सही,                                                 मुझे अपने आगोश में लेकर सो जाना               और कोई चाहत नहीं इस जगत में अब मुझको               मैं चाहता हूँ --शून्य में खो जाना ,               या सच कहूँ तो मात्र विसर्जित हो जाना --               सब तो करके देख लिया मैंने --               कर्म -- भक्ति ---ज्ञान साधना              कंही कोई सार नहीं --- सब है असार --...
बेताब हूँ मैं उसके लिये , मालूम है बखूबी उसको , फिर भी वो मुझको इतना सताती क्यों है ? दुनिया भर को बताती है , वो हाले दिल अपना , सिर्फ मुझसे ही इस बात को छुपाती क्यों है ? खुदबखुद झगडती है , मुझसे वो झगड़ालू झाड , पर मुझ ही पे ये इलज़ाम वो लगाती क्यों है ? चलो गर इलज़ाम लगाया मुझ पर वो भी ठीक, मगर फिर खुद को वो इतना रुलाती क्यों है ? माना कि नींद नहीं आती है रात भर उसको , पर मुझको फिर वो रात भर जगाती क्यों है ? तेवर उसके देखो यूँ कि जीतेगी ज़माने को , फिर किसी के आगे यूँ वो हार जाती क्यों है ?