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ये इन्तहा थी

मैं था - मेरा जूनून था - और था - इश्के रूहानी ,
तू कंहाँ था - कंहाँ तेरी फ़िक्र - कंहाँ थी तेरी कहानी ,
फिर तब - क्यों तेरी तब्बसुम - एक आगोश में बदली ,
बस सिर्फ़ तू था -- तेरी फिकर- और बस तेरी कहानी ,
मुस्कराहटें - और सरगोश्याँ - खामोशियाँ ये तो पहचानी ,
न पहचानी तो मेरी अक्ल- फरके मज़ाजो इश्के रूहानी ,
न तू था - न मैं था - था तो बस एक वजूद ----------
ये इन्तहा थी - या इश्क था - या थी बस एक हैरानी .

टिप्पणियाँ

angel ने कहा…
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ध्यान एवं स्वास्थ्य - Meditation and Health

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रिश्ता ?

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तुम

उस दिन हम  जब अचानक आमने सामने थे , तुम्हारी खामोश निगाहों में एक खामोश शिकवा था न मेरे लिए ? कितनी खूबी से तुमने उसे छिपा लिया अपनी पलकों में । और यूँ मिली मुझसे जैसे कभी कोई शिकवा न था । शिकवा न था कोई तो फिर वो दूरियां क्यों थी ? मिलते हैं फिर कभी , ये कह के तुम चल तो दीं । मगर कब तक , और फिर एक दिन  जब सच में तुम को जाना था तब आयीं थी तुम फिर मेरे पास कुछ पलों के लिये । और मैं आज भी उन पलों के साथ जी रहा हूँ,  जैसे मुझे पूरी पृथ्वी का साम्राज्य मिल गया हो ।