रविवार, 8 जून 2008

मेरी शायरी

कभी तुम मेरी मोहब्बत को आजमा के देखो -
कभी तुम मेरे पास आ के देखो -
कभी मुझसे दूर जा के देखो -
यूं तो देखा होगा तुमने ज़माने में इन्क्लाबों को -
कभी मेरी आवाज़ में अपनी आवाज़ मिला के देखो-
तलाशते हैं दरख्त भी साये को धूप में-
कभी सीने में तुम मेरे अपना चेहरा छिपा देखो -
चलो आओ बाहर निकलो अपने दायरों से -
उठाकर अपने हाथो को ------

मुद्दतों जिसे चाहा - वो मंजर शहर का देखो

1 टिप्पणी:

विजय गौड़ ने कहा…

पास तो हम हरवक्त हैं दोस्त. स्वागत और शुभकामनायें.