शुक्रवार, 13 जून 2008

ये इन्तहा थी

मैं था - मेरा जूनून था - और था - इश्के रूहानी ,
तू कंहाँ था - कंहाँ तेरी फ़िक्र - कंहाँ थी तेरी कहानी ,
फिर तब - क्यों तेरी तब्बसुम - एक आगोश में बदली ,
बस सिर्फ़ तू था -- तेरी फिकर- और बस तेरी कहानी ,
मुस्कराहटें - और सरगोश्याँ - खामोशियाँ ये तो पहचानी ,
न पहचानी तो मेरी अक्ल- फरके मज़ाजो इश्के रूहानी ,
न तू था - न मैं था - था तो बस एक वजूद ----------
ये इन्तहा थी - या इश्क था - या थी बस एक हैरानी .

2 टिप्‍पणियां:

angel ने कहा…

ocisho

angel ने कहा…

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