रविवार, 4 नवंबर 2012

अनन्या 

तुम्हारी तमाम बदमाशियों के बावजूद -
मैं लगा लेना चाहता हूँ तुम्हे अपने सीने से -
चूम लेना चाहता हूँ तुम्हारा माथा और
तुम्हे अपने आगोश में लेकर डूब
जाना चाहता हूँ तुम्हारी निगाहों में -
गहरे और गहरे और गहरे ताकि -
उनकी गहराइयों से ढूंढ़ कर ला सकूँ
वो राज - जहाँ से जन्म होता है
इन बदमाशियों का - जिनसे तुम
सताती हो तमाम ज़माने को
और मुझे भी

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