रविवार, 4 नवंबर 2012

अनन्या 
नहीं कोई इश्क नहीं -
मोहब्बत नहीं - जूनून नहीं -
सिर्फ यहाँ एक अनुपस्थिति है- फिर भी ,
ये क्यों लगता है कि -- तुम हो -
नहीं इस ख़ामोशी में ,
कोई दर्द नहीं - कोई तन्हा नहीं ,
कोई वजूद नहीं , फिर भी ,
क्यों लगता है कि-- तुम हो,
यूँ भी नहीं कि इस फेसबुक पर ,
कोई दोस्त नहीं , कोई अपडेट नहीं ,
इन दिनों बस तुम्हारा फैलाया हुआ सन्नाटा है ,
फिर भी , क्यों लगता है कि -- तुम हो
 

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