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बुरा आदमी

मैं अक्सर जब लोगों से मिलता हूँ , जंहा कंही जाता हूँ मुझे बड़े अच्छे लोग मिलते हैं , बड़े प्यारे लोग - देश की दशा से परेशान - हैरान , मेरी तरह मेरे देश का आम आदमी कितना सीधा - भोला - शरीफ इंसान है - ठीक मेरी तरह . कभी सफ़र करो , बस या ट्रेन में , कितना डिस्कशन देश की दशा - भ्रष्टाचार - राजनीति - आम आदमी के कष्ट पर कितना डिस्कशन - मेरी तरह और फिर हर तरफ देश की गली गली में मौजूद मेरी प्यारी भारतीय नारी सौन्दर्य - सदगुणों से भरपूर - मेरे प्यारे भारत के सदियों से चले आ रहे चरित्र के महान गुणों से परिपूर्ण पर ये मेरे देश का आम आदमी इस प्यारी भारतीय नारी को - सड़क पर ‘आतियों-जातियों’ को बानर की तरह घूरता क्यों है - मेरी तरह और अक्सर तब इस महान भारत राष्ट्र में कोई हादसा रोज होता है इस देश की आधी आबादी के साथ --- बस सिर्फ संज्ञा बदल जाती है कभी वो दहेज़ की- कभी बलात्कार की कभी उसके भूर्ण की बलि चढ़ जाती है , फिर कभी त्राहि त्राहि मच जाती है , दिल दहल जाते हैं -- दिल्ली भी दहल जाती है , पर फिर मैं इतना हैरान क्यों हूँ , परेशान क्यों ...
अनन्य - सब सहज सा हो गया है -------- क्या फर्क पड़ता है कोई बस खो गया है -------- लोग त्रस्त हैं , पर फिर भी व्यस्त हैं , यंहा जब कि शमशान में ---- जंहा सब निरस्त है , वंहा भी सब अपने ----- मोबाइल पर व्यस्त हैं कितना कुछ,जीवन में ---सब अस्त -व्यस्त है . इतना बिखर गया है जीवन-- फिर भी कितने मस्त हैं सब सहज सा हो गया है -------- क्या फर्क पड़ता है कोई बस खो गया है --------
                              मैं मलय हूँ ,                                दिग - देगांतर  में फैलता ही                                जाये जो वो वलय हूँ ,                                 मैं मलय हूँ ,                                  क्या पता था - मनुज की आहटों में जिन्दगी है                                          क्या पता - आलिंगनो की ऊष्म...

वो हवाओं में गुनगुनाएगा

वो हवाओं में गुनगुनाएगा - तुम सुन भी सकते हो वो फिजाओं में----महक जायेगा , फिर उस महक को तुम भर लेना अपनी बांहों में वो यूँ भी मिल जायेगा आये न आये तुम्हारे पास - ऐ जिन्दगी वो हवाओं में गुनगुनाएगा---
अनन्या  तुम्हारी तमाम बदमाशियों के बावजूद - मैं लगा लेना चाहता हूँ तुम्हे अपने सीने से - चूम लेना चाहता हूँ तुम्हारा माथा और तुम्हे अपने आगोश में लेकर डूब जाना चाहता हूँ तुम्हारी निगाहों में - गहरे और गहरे और गहरे ताकि - उनकी गहराइयों से ढूंढ़ कर ला सकूँ वो राज - जहाँ से जन्म होता है इन बदमाशियों का - जिनसे तुम सताती हो तमाम ज़माने को और मुझे भी
अनन्या  नहीं कोई इश्क नहीं - मोहब्बत नहीं - जूनून नहीं - सिर्फ यहाँ एक अनुपस्थिति है- फिर भी , ये क्यों लगता है कि -- तुम हो - नहीं इस ख़ामोशी में , कोई दर्द नहीं - कोई तन्हा नहीं , कोई वजूद नहीं , फिर भी , क्यों लगता है कि-- तुम हो, यूँ भी नहीं कि इस फेसबुक पर , कोई दोस्त नहीं , कोई अपडेट नहीं , इन दिनों बस तुम्हारा फैलाया हुआ सन्नाटा है , फिर भी , क्यों लगता है कि -- तुम हो