मैं तो ये सोचकर तेरे पास आया था , कि तू एक प्रेम की झील है-- पर अभी एक कदम ही तो बढ़ा था तेरी तरफ , कि चाँदनी अभी बिखरी ही थी - यकायक , मुझे खुद पे यकीन न रहा , इतना नूर था - तेरे आसपास -- तेरे करीब , जैसे कोहेनूर हो कोई ख़ास -- कि जैसे ताज - महल बदल रहा हो तेजो - महालय में , एक मंदिर की तरह , और मैं हूँ यंहा खड़ा -- इस निस्तब्ध मंदिर में , एक ऐसे भक्त की तरह मौन , जिसे ज्ञान की देवी ने दर्शन देकर , कर दिया हो स्तब्ध ------------ तू तो कहती थी -- मैं प्रेम की एक झील हूँ , फिर ये ज्ञान ---? ओह ---आज समझ पाया -- क्यों कहते थे भगवान ( ओशो ) कि भीतर ज्ञान का दिया जले , तो बाहर प्रकट होगा ही प्रेम का नूर - तभी तो तुम हो न कोहेनूर , या प्रेम की झील या ज्ञान की झील ? 17 अगस्त 13 श...
जीवन एक अवसर है - जीवन प्रेम है - जीवन घृणा है - जीवन आनंद है - जीवन दुख है - जीवन सफलता है - जीवन संघर्ष है - जीवन समृद्धि है - जीवन गरीबी है - जीवन स्वर्ग है - जीवन नर्क है - हमें मिला सबसे बड़ा वरदान है - "स्वतंत्रता" - अपनी इच्छा के अनुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता - यह स्वतंत्रता एक बड़ी जिम्मेदारी लाती है - हम इस स्वतंत्रता से कैसे अपने जीवन को बदलते हैं - यह साइट पूरी तरह से स्वयं के रूपान्तरण के बारे में है -"आपमें जो भी से सर्वश्रेष्ठ गुण हैं , अन्वेषण करने के लिए -