सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

नवंबर, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वो हवाओं में गुनगुनाएगा

वो हवाओं में गुनगुनाएगा - तुम सुन भी सकते हो वो फिजाओं में----महक जायेगा , फिर उस महक को तुम भर लेना अपनी बांहों में वो यूँ भी मिल जायेगा आये न आये तुम्हारे पास - ऐ जिन्दगी वो हवाओं में गुनगुनाएगा---
अनन्या  तुम्हारी तमाम बदमाशियों के बावजूद - मैं लगा लेना चाहता हूँ तुम्हे अपने सीने से - चूम लेना चाहता हूँ तुम्हारा माथा और तुम्हे अपने आगोश में लेकर डूब जाना चाहता हूँ तुम्हारी निगाहों में - गहरे और गहरे और गहरे ताकि - उनकी गहराइयों से ढूंढ़ कर ला सकूँ वो राज - जहाँ से जन्म होता है इन बदमाशियों का - जिनसे तुम सताती हो तमाम ज़माने को और मुझे भी
अनन्या  नहीं कोई इश्क नहीं - मोहब्बत नहीं - जूनून नहीं - सिर्फ यहाँ एक अनुपस्थिति है- फिर भी , ये क्यों लगता है कि -- तुम हो - नहीं इस ख़ामोशी में , कोई दर्द नहीं - कोई तन्हा नहीं , कोई वजूद नहीं , फिर भी , क्यों लगता है कि-- तुम हो, यूँ भी नहीं कि इस फेसबुक पर , कोई दोस्त नहीं , कोई अपडेट नहीं , इन दिनों बस तुम्हारा फैलाया हुआ सन्नाटा है , फिर भी , क्यों लगता है कि -- तुम हो