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रिश्ता ?

तुमसे ये रिश्ता क्या है      यूँ तो बस कभी यूँ ही मिले थे हम  फिर भी ये रिश्ता क्या है ,  मैंने कहा , चलोगे मेरे साथ    तुम चल ही तो पड़े थे और फिर जब कभी हम बात करते थे दूरभाष पर ही  तो यकायक फूल से खिल उठते थे ,     तो ये रिश्ता क्या है और तुम्हारे बेबूझ नाराजी के बावजूद    अरसे बाद जब मिले तो क्या खूब मिले तो फिर ये रिश्ता क्या है । कितना तो पूछा हर बार तुम हँस के यही बोले  मैं ऐसी ही हूँ बेबूझ ।  और अब जब तुम अपनी दुनिया में खो गयीहो      तो  मेरे अंतरतम से अचानक ये रिसता कया है

जीवन

जीवन अज्ञात    भविष्य सम्भावना से पूर्ण  क्या है ज्ञात ? कब हो क्या घटित कौन जानता , किसके हिस्से में होगा प्रकाश कँहा , कब अंधकार कोई न जानता , ये रहस्य ? तब जीने की कला क्या है ? बेफिक्र होकर इस अज्ञात रहस्य से हमेशा जिओ आज में परिपूर्ण । कल के अज्ञात को रहने दो अज्ञात ।